अहंकार का नाश ही मार्दव धर्म की प्राप्ति है: आचार्य श्री सुबल सागर महाराज

अहंकार का नाश ही मार्दव धर्म की प्राप्ति है: आचार्य श्री सुबल सागर महाराज

Destruction of Ego

Destruction of Ego

Destruction of Ego: महापर्व राज पर्युषण पर्व जो कि एक शाश्वत पर्व हैं जो अनादि काल से चला आ रहा है इसे बनाने वाला कोई नही है जब से इस धरती पर सूर्य चंद्रमा है|तब से ही यह शाश्वत पर्व चला आ रहा है।

पर्वाधिराज का आज द्वितीय दिवस पर महावीर दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर - 27 B में विराजमान आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुआ कि”मान महा विष रूप, करिये नीच गति जगत । नीच गति में कोई ले जाने वाला कोई है तो वह है मान अर्थात् अहंकार|में हूँ इस भाव के साथ जीवन जीने वाले का निश्चित ही पतन हुआ है। इस काल के प्रथम चक्रवर्ती राजा भरत हुए थे जिनके नाम से ही इस का नाम भारत रखा गया |

जब उन्होने छ: खण्डों .को जीत कर पूरे देश पर अपना अधिकार जमाया तब वह अपनी प्रशक्ति लिखने के लिए वृषभाचल पर्वत और पर गए तो उनका मान भंग हो गया क्यों कि पर अर्थात् पर्वत पर  नाम लिखने के लिए कोई भी स्थान खाली नहीं था। वे सोचने लगते है कि में तो इस युग का पहला ही चक्रवर्ती हूँ |मेरे बाद चक्रवर्ती और होगें लेकिन ए। सब जिनके नाम लिखे हुए है ऐ कहाँ से आए, ऐसा विचार करते ही वे चिंतंवन की धारा में बह  गए कि में कौन हूँ। जब मेरे से पहले इतने सारे चक्रवर्ती हो चुके है फिर में किस पर अहंकार करू। उनका वैराग्य वृद्धि को प्राप्तहो गया 

अहंकार और अभिमान ऊँचे व्यक्तिओं को भीं नीचा बना देता है, इंसान को भी हैवान बना देता है। अहंकार जीवन की मूलभूत समस्या हैं, जहां अहंकार है वहां अंधकार हैं, इसलिए अहंकार, अभिमान छोड़कर विनम्रता अपनाओ, क्यों कि मान मानवता का नाश कर देता है। उत्तम मार्दवधर्म अपनाने से मान व अहंकार का मर्दन हो जाता है और व्यक्ति सच्ची विनयशीलता को प्राप्त करता है, जिसे अहंकार होता है वह श्रेष्ठता को प्राप्त नहीं हो सकता है। पेड़ वही झुकते हैं जो फलों से भरे होते हैं और विनम्र वही होता है जो गुणों से भरे होते हैं। 
मान कषाय को जीतना ही मार्दव धर्म है। इस धर्म को धारण करके ही यही परीक्षा है कि जिस समय कोई अन्य पुरुष किसी प्रकार के अहंकार में आकर अनादर कर देवे तो उस समय अपनी आत्मा में अनादर करने वाले के प्रति किसी प्रकार के प्रतिकार करने की भावना नहीं होना और तत्व स्वरूप का चिंतंवन करते हुए उसको सहन कर जाना ही मार्दव धर्म है। उत्तम
मैं यानि अहंकार। अहंकार बहुत मीठा जहर है। अहम को मिटाना, कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। आज से हाथ जोड़कर जीना शुरू कर दो। इससे पराये की अपने हो जाते है। आज के दिन शांतिधारा करने का परम सौभाग्य रांची झारखण्ड से पधारे गुरु भक्त श्रीमान् नरेश ऊषा जैन सेठी परिवार को प्राप्त हुआ और श्री मान प्रमोद कुमार चडीगढ़ वालों को प्राप्त हुआ । सायं कालीन बेला में गुरू भक्ति, दीप अर्चना, आरती, और धार्मिक अंताक्षरी कार्यक्रम कार संपन्न होगा।

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